12 जुन विश्व बाल मजदूरी निषेध दिवस, बाल मजदूरी से बच्चे शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर…

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बाल मजदूरी…

#अनुच्छेद 23 –
मानव के दुर्व्यापार, बेगार और सभी प्रकार के बाल श्रम को निषेध करता है। यह अधिकार नागरिक और गैर – नागरिक दोनों के लिए उपलब्ध है।

◆ मानव दुर्व्यापार(Human Miserable) –
पुरुष, महिला,बच्चों के खरीद-फरोख्त से, वेश्यावृत्ति, देवदासी व दास प्रथा से संबंधित है।
बेकार (Forced labour)- बिना पारिश्रमिक के कार्य कराना।

◆ इन कृत्यों को रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा अनैतिक व्यापार अधिनियम (1956), बंधुआ मजदूरी अधिनियम (1976) और समान पारिश्रमिक अधिनियम (1976) बनाए गए है।

◆ अनुच्छेद 23 के अपवाद (Exception of article 23)

राज्य सार्वजनिक उद्देश्य के लिए अनिवार्य श्रम योजना लागू कर सकता है। जैसे – सैन्य सेवा सामाजिक सेवा आदि इस प्रकार की सेवाओं के लिए धन देने के लिए बाध्य नहीं है । लेकिन ऐसा करते समय राज्य नागरिकों के मध्य धर्म, मूल वंश, जाति, निवास स्थान, सामाजिक स्तर आदि के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।

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अनुच्छेद 24: कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध –

#चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नही लगाया जाएगा।

14 वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चों को कारखानों या अन्य किसी जोखिम भरे स्थानों पर नियुक्त नहीं किया जा सकता । यह निषेध किसी भी प्रकार के जोखिम युक्त कार्यों के लिए है तथा संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nation-UN ) के सिद्धांतों के अनुसार है ।

बाल श्रम संशोधन (2016)
पुनः बालश्रम संशोधन अधिनियम (2016) द्वारा बाल श्रम संशोधन अधिनियम (1986) को संशोधित किया गया और इसका नाम बाल एवं किशोर श्रम अधिनियम (1986) कर दिया।

यह अधिनियम 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को सभी प्रकार के व्यवसाय में रोजगार निषिद्ध करता है। इसके अंतर्गत पहले 18 व्यवसायों व 65 प्रक्रियाओं पर लागू था। बाल श्रम संशोधन अधिनियम (2016) के अनुसार 14 से 18 वर्ष के बच्चों को कतिपय/बेहद खतरनाक एवं प्रक्रिया में रोजगार निषेध है।

बाल श्रम संशोधन अधिनियम का उल्लंघन करने वालों के लिए सजा का प्रावधान भी है।

◆ 6 माह से 2 वर्ष की कैद अथवा 20000 से 50000 तक जुर्माना।
◆पुनः पकड़े जाने पर 1 वर्ष से 3 वर्ष की सजा की अवधि होगी।

कहते हैं कि भूख और गरीबी ऐसी चीज है जो इंसान से कुछ भी करा सकती है। शायद यही वजह है कि अपने खेलने कूदने और स्कूल जाने की उम्र में दुनिया का हर दसवां बच्चा मजदूरी करने को मजबूर है। जो न केवल उनके आज बल्कि उनके भविष्य को भी बर्बाद कर रहा है। यह आंकड़ा करीब 16 करोड़ है। इनमें से करीब 39.4 फीसदी (6.3 करोड़) बच्चियां और 60.6 फीसदी (9.7 करोड़) बच्चे हैं। यह जानकारी हाल ही में इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन (आईएलओ) और यूनिसेफ द्वारा जारी रिपोर्ट में सामने आई है।


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ऐसा नहीं है कि बाल मजदूरी को खत्म करने की दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई थी। 2000 से इसमें लगातार कमी आ रही थी। पर पिछले 20 वर्षों में यह पहला मौका है जब बाल मजदूरों की संख्या में इजाफा हुआ है। आंकड़ों के मुताबिक 2000 में करीब 24.6 करोड़ बच्चे बाल मजदूरी कर रहे थे। जिसमें से 17 करोड़ से ज्यादा बच्चे जोखिम भरे कामों में लगे हुए थे।

  • 2004 में बाल मजदूरों का यह आंकड़ा घटकर 22.2 करोड़, 2008 में 21.5 करोड़, 2012 में 16.8 करोड़ और 2016 में घटकर 15.2 करोड़ पर पहुंच गया था जब इनमें से करीब 7.3 करोड़ बच्चे जोखिम भरे कामों में लगे हुए थे। पर 2020 के आंकड़ों के अनुसार यह बाल मजदूरों का आंकड़ा 84 लाख की वृद्धि के साथ बढ़कर 16 करोड़ पर पहुंच गया है, जिसका मतलब है कि दुनिया के करीब 9.6 फीसदी बच्चे बाल मजदूरी कर रहे हैं।